समय के चौराहे पर खड़ी सभ्यता
द्वेष की राह को निहार रही है।
ये कौन बताएगा हमें
कि उस पथ का शेष केवल शेष है?
द्वेष की राह को निहार रही है।
ये कौन बताएगा हमें
कि उस पथ का शेष केवल शेष है?
अंतर्भास अन्तर के आभास से आएगा,
ये कौन समझाएगा इस पीढ़ी को
अपने सशक्त, कोमल, तीक्ष्ण, प्रेरक, स्नेही
पंक्तियों से?
ये कौन समझाएगा इस पीढ़ी को
अपने सशक्त, कोमल, तीक्ष्ण, प्रेरक, स्नेही
पंक्तियों से?
जब देशभक्ति का अमृत लोगों के रगों में
राष्ट्रवाद के विष में परिवर्तित हो रहा है,
वो कवि ही तो है जो इस विष को
बिना सुई दवाई के निकाल सकता है।
राष्ट्रवाद के विष में परिवर्तित हो रहा है,
वो कवि ही तो है जो इस विष को
बिना सुई दवाई के निकाल सकता है।
वो कवि ही तो है जो बिना तस्वीर, तरकीब, या
तकरीर के
असत्य को सत्य से परिचित करा सकता है।
तकरीर के
असत्य को सत्य से परिचित करा सकता है।
वो कवि ही तो है जो शांतिप्रिय लोगों को अपने
सोच, तर्क, और भविष्य के सपनों को
प्रकाशित करने का मनोबल दे सकता है।
सोच, तर्क, और भविष्य के सपनों को
प्रकाशित करने का मनोबल दे सकता है।
वो कवि ही तो है जो भूख, भय, और भावनाओं
के दलदल में पनपते
नफ़रत, हिंसा, और सांप्रदायिकता
के बीज को ढूंढ निकालता है।
के दलदल में पनपते
नफ़रत, हिंसा, और सांप्रदायिकता
के बीज को ढूंढ निकालता है।
वो कवि ही तो है जो अपने
कविताओं के मरहम और गीतों के पट्टी से
एक घायल देश की आत्मा को
फिर से सजीव कर सकता है।
कविताओं के मरहम और गीतों के पट्टी से
एक घायल देश की आत्मा को
फिर से सजीव कर सकता है।
कहां चले गए हैं सारे कवि?
क्या अब तक उनके कलम में आक्रोश
और व्यथा की स्याही भरी नहीं?
क्या अब तक उनके कलम में आक्रोश
और व्यथा की स्याही भरी नहीं?
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