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Tuesday, April 02, 2019

मैं विकास हूं

मैं विकास हूं। मैं खो गया हूं।

बैठकर मेरे कांधों पर
पुत्र लाया था मुझे।
धर्म और राजनीति के संगम पर
स्नान कराया था मुझे।
फिर महत्वाकांक्षा के कुंभ में
छोड़ आया था मुझे।



मैं विकास हूं। मैं खो गया हूं।

थी प्रीत जहां की रीत सदा
ये वो लुप्त उपवन है
आज यहां भ्रमण करते
रक्त के प्यासे जन हैं
नफ़रत की आग में दहकता
यह एक घनघोर वन है

मैं विकास हूं। मैं खो गया हूं।

ओ भारती, ओ भारती
पुकार रहा हूं आज।
राष्ट्रवाद के नगाड़े के शोर में
सुन लो मुझे आज।
भ्रमित अहंकार के दरिया से
बचा लो मुझे आज।

मैं विकास हूं। मैं खो गया हूं।

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